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Manish Pathak M. Sc. in Mathematics and Computing (IIT GUWAHATI) B. Sc. in Math Hons. Langat Singh College /B. R. A. Bihar University Muzaffarpur in Bihar The companies/Organisations in which I was worked earlier are listed below: 1. FIITJEE LTD, Mumbai 2. INNODATA, Noida 3. S CHAND TECHNOLOGY(SCTPL), Noida 4. MIND SHAPERS TECHNOLOGY (CLASSTEACHAR LEARNING SYSTEM), New Delhi 5. EXL SERVICES, Noida 6. MANAGEMENT DEVELOPMENT INSTITUTE, GURUGRAM 7. iLex Media Solutions, Noida 8. iEnergizer, Noida I am residing in Mira Road near Mumbai. Contact numbers To call or ask any doubts in Maths through whatsapp at 9967858681 email: pathakjee@gmail.com

Friday, December 23, 2011

सिटीजऩ चार्टर: अन्ना के प्रस्ताव बनाम सरकारी बिल

सरकारी कामकाज में भ्रष्टाचार की एक बड़ी शिकायत रिश्वतखोरी को लेकर है. व्यापार का लाईसेंस लेना हो, मकान का नक्शा पास करना हो, रजिस्ट्री करानी हो, बैंक से लोन लेना हो, पासपोर्ट अथवा ड्राविंग लाईसेंस बनवाना हो, राशनकार्ड, नरेगा जॉबकार्ड यहां तक कि वोटर कार्ड बनवाने में भी रिश्वत चलती है 


अन्ना हज़ारे ने  रिश्वत के बिना काम होने और  रिश्वतखोरों को दंड लगाने की व्यवस्था लोकपाल क़ानून के ही तहत बनाने का प्रावधान रखा है सरकार ने इसके लिए अलग से क़ानून बनाने के लिए बिल संसद में पेश किया है:-

क्या है दोनों प्रस्तावों में बुनियादी अंतर -
अन्ना के प्रस्ताव (जनलोकपाल कानून के तहत)
सरकार  के प्रस्ताव (जनशिकायत निवारण  के लिए अलग कानून  के तहत)
1
इस काननू के लागू होने के बाद समुचित समय सीमा मेंअधिकतम एक वर्ष के अंदर प्रत्येक लोक प्राधिकरण (पब्लिक अथॉरिटी) एक सिटीजऩ चार्टर बनाएगा
लगभग ऐसी ही व्यवस्था की गई है
2
प्रत्यके सिटीजऩ चार्टर में उस लोक प्राधिकरण द्वारा किए जाने वाले कार्यों की समय प्रतिबद्धता के बारे में, और उस समय सीमा में कार्य पूरा करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के बारे में स्पष्ट विवरण होगा
लगभग ऐसी ही व्यवस्था की गई है
3
यदि कोई लोक प्राधिकरण, इस काननू के लागू होने के  एक वर्ष के अंदर सिटीजऩ चार्टर तैयार नहीं करता है तो उस प्राधिकरण से चर्चा के बाद, लोकपाल/लोकायुक्त स्वयं उसका सिटीजऩ चार्टर तैयार करेगा और यह उस लोक प्राधिकरण पर बाध्य होगा.
सरकारी सिटीजऩ चार्टर बिल में लोकपाल/लोकायुक्त के पास अथवा अलग से बन रहे जनशिकायत आयोग के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है
4
प्रत्येक लोक प्राधिकरण पाने सिटीजऩ चार्टर को लागू करने के लिए आवश्यक संसाधनों का आकलन करेगा और सरकार उसे वह संसाधन उपलब्ध कराएगी
ऐसी कोई व्यवस्था ही नहीं है: अत: कोई भी विभाग संसाधन उपलब्ध न होने,
कर्मचारियों की संख्या कम होने आदि कारणों को बहाना बनाकर तय समय
सीमा में काम न करने की ज़िम्मेदारी से बचेगा.
5
प्रत्येक लोक प्राधिकरण, अपने सभी केन्द्रों में, जहां जहां भी उसके कार्यालय हों, एक कर्मचारी को जनशिकायत निवारण अधिकारी  के रुप में नामित करेगी. कोई भी नागरिक सिटीजऩ चार्टर का उल्लंघन होने की स्थिति में जनशिकायत अधिकारी  के पास शिकायत कर सकेगा.
लगभग ऐसी ही व्यवस्था की गई है
6
किसी भी कार्यालय में उसका वरिष्ठतम अधिकारी जनशिकायत निवारण अधिकारी के रूप में नामित होगा.
ऐसा नहीं है
7
जनशिकायत निवारण अधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि वह , नागरिकों से सिटीजऩ चार्टर के उल्लंघन की शिकायतें प्राप्त करे और प्राप्ति के अधिकतम 30 दिन के अंदर उनका समाधान करे.
सरकार के प्रस्ताव में जनशिकायत निवारण अधिकारी के यहां शिकायत करने पर उनकी पावती (रिसिप्ट) लेने के लिए भी दो दिन का समय रख दिया है इसका
मतलब यह हुआ कि शिकायत करने के वक्त शिकायत के काग़ज़ लेकर रख लिए जाएंगे और अगर उसे पावती चाहिए तो अगले दो दिन तक कम से कम एक चक्कर जरू़ र कटवाया जाएगा. हालांकि बिल में यथासंभव ईमले अथवा एसएमएस से भी पावती भेजने की बात कही गई है लेकिन व्यावहारिकता में एक सामान्य सरकारी दफ्तर में किसी आम आदमी को एक सामान्य आवेदन की रिसिप्ट तक नहीं दी जाती.शिकायत की पावती देने के लिए दो दिन का समय देने से शायद ही किसी को हाथों हाथ पावती मिले.
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जनशिकायत निवारण अधिकारी द्वारा 30 दिन की समय सीमा में शिकायत का निवारण नहीं किए जाने की स्थिति में विभाग के प्रमुख के पास इसकी शिकायत की जा सकती है
विभाग के प्रमुख के पास शिकायत करने की कोई प्रावधान नहीं है.
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यदि विभाग प्रमुख भी अगले 30 दिन के अंदर समस्या का समाधान नहीं करता है तो इसकी शिकायत लोकपाल के न्यायिक अधिकारी के समक्ष की जा सकेगी लोकपाल प्रत्यके जिले में कम से कम एक न्यायिक अधिकारी की नियुक्ति करेगा. किसी जिले में कार्य की अधिकता को देख़ते हुए यह संख्या एक से अधिक भी हो सकती है लोकपाल द्वारा न्यायिक अधिकारी के पद पर नियुक्तियां अवकाश प्राप्त न्यायधीश, अवकाश प्राप्त सरकारी अधिकारी अथवा इसी किस्म के अन्य सामान्य नागरिकों के बीच से की जाएंगी
सिटीजऩ चार्टर बिल के अनुसार जनशिकायत अधिकारी के 30 दिन में शिकायत दूर न करने पर एक डेज़ीगिनेटिड अथॉरिटी के पास अपील की जाएगी. बिल में यह तो लिखा है कि यह डेज़ीगेनेटेड अथॉरिटी उस विभाग से अलग एक अधिकारी होगा. उसके पास सिविल कोर्ट की पावर भी होगी. इसका काम होगा तीस दिन में अपील का निस्तारण करना लेकिन यह कौन अधिकारी होगा? क्या यह अलग से नियुक्त किया जाएगा अथवा किसी अन्य विभाग के अधिकारी को यह दायित्व दिया जा सके गा? क्या हर विभाग के लिए अलग अलग अधिकारी इसके लिए बाहर से नियुक्त किए जाएंगे. अगर नई नियुक्ति होगी तो वह किस तरह होगी? किस योग्यता के व्यक्ति की होगी? इस बारे में बिल में कुछ नहीं लिखा है. इसका फ़ायदा उठाकर सरकार राजनीतिक संपर्क वाले किसी भी व्यक्ति को नियुक्त कर सकेगी. और जन शिकायत निवारण की व्यवस्था ज़िला स्तर पर राजनीतिक कृपापात्र लोगों की नियुक्ति का धंधा बन कर रह जाएगी.
यह डेज़ीगेनेटेड अथॉरिटी ज़िला स्तर पर एक होगी, पूरे राज्य के लिए एक होगी अथवा हरेक विभाग में एक जन शिकायत निवारण अधिकारी के लिए अलग अलग होगी? इसका कोई ज़िक्र बिल में नहीं है.
10
यदि न्यायिक अधिकारी की राय में शिकायत निवारण का कार्य उचित तरीके से नहीं हुआ है तो वह, संबद्ध पक्षों को सुनवाई का अवसर देते हुए, विभाग प्रमुख सहित,शिकायत निवारण न होने के लिए जिम्मेदार अधिकारी पर जुर्माना लगाएगा, जोकि  शिकायत निवारण में हुई देरी के लिए अधिकतम 500 रुपए प्रतिदिन की दर से होगा और 50,000  रुपए प्रति अधिकारी से अधिक नहीं होगा. यह राशि जिम्मेदार ठहराए गए दोशी अधिकारियों के वेतन से काटी जाएगी. यदि इस तरह के मामले में पीड़ित व्यक्ति सामाजिक अथवा आर्धिक रूप से पिछड़ा है तो दोशी अधिकारी पर ज़ुर्माने की राशि दोगुना हो जाएगी.
डेज़ीगेनेटेड अथॉरिटी के पास ज़ुर्माना लगाने का अधिकार तो है अंगे्रज़ीं भाषा में शैल इंपोज  पनेल्टी की जगह  इंपोज पनेल्टी लिखा गया है जिससे जुर्माना लगाना या न लगाना अधिकारी के विवेक पर छोड़ दिया गया है. सूचना के अधिकार के मामले में हमने देखा है कि शैल इंपोज़ पेनल्टी लिखे होने के बावजूद सूचना आयुक्त सूचना न दने  वाले अधिकारियो  पर ज़ुर्माना नहीं लगाते इसका नुकसान यह है कि अब सूचना मिलती नहीं है, सूचना आयोग का डर अधिकारियों के मन में कहीं नहीं बचा है और धीरे धीरे लोग इस क़ानून के प्रति निराश होने लगे हैं
काम होने में प्रतिदिन देरी पर ज़ुर्माना लगाने की जगह कुल मिलाकर अधिकतम 50,000 रुपए तक के ज़ुर्माने का प्रावधान रखा गया है. ज़ुर्माने की राशि शिकायतकर्ता को मुआवज़े के रूप में दिलवाए जा सकने का भी प्रावधान है लेकिन सामाजिक और आर्धिक वर्ग के पिछड़े शिकायतकर्ता को दोगुना मुआवज़ा
दिलवाने अथवा ऐसे मामलों में दोशी अधिकारी पर दो गुना ज़ुर्माना लगाने का प्रावधान नहीं रखा गया है.
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लोकपाल के न्यायिक अधिकारी के भ्रष्ट होने की शिकायत लोकपाल के पास की जा सकेगी
सबसे ख़तरनाक बात है कि यह डेज़ीगेनेट अथॉरिटी किसके प्रति जवाबदेह होगा? सरकार के प्रति या जनशिकायत आयोग के प्रति? बिल के हिसाब से तो यह किसी के प्रति जवाबदेह ही नहीं होगा. ऐसी स्थिति में अगर यह अधिकारी ही भ्रष्ट हो जाए तो इसके खिलाफ एक्शन कौन लेगा?
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ऐसे मामलों में लोकपाल का न्यायिक अधिकारी एक समय सीमा तय कर, संबंधित अधिकारी को शिकायतकर्ता की शिकायत के निवारण का आदेश भी जारी करेगा.
लगभग ऐसा ही है 
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किसी अधिकारी के खिलाफ बार बार एक ही तरह की शिकायतें आने को भ्रष्टाचार माना जाएगा.
यह व्यवस्था नहीं की गई है
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किसी अधिकारी के खिलाफ बार बार शिकायत आने की स्थिति में, न्यायिक अधिकारी, उस  शिकायत के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को पद से हटाने अथवा उन्हें पदोवनत करने की सिफारिश लोकपाल की खंडपीठ के पास करेगा. लोकपाल की खंडपीठ, अधिकारियों के पक्ष की समुचित सुनवाई करते हुए, सरकार को ऐसी सख्त कार्रवाई की सिफारिश करेगी.
यह व्यवस्था नहीं की गई है
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प्रत्यके लोक प्राधिकरण, प्रत्यके वर्ष, अपने सिटीजऩ चार्टर की समीक्षा कर उसमें समुचित बदलाव करेगा. यह समीक्षालोकपाल के प्रतिनिधि की उपस्थिति में, जन चर्चाओं के माध्यम से की जाएगी
इस बारे में स्पष्ट व्यवस्था नहीं है.
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लोकपाल, किसी लोक प्राधिकरण के सिटीजऩ चार्टर में परिवर्तन हेतु आदेश जारी कर सकता है. लेकिन यह परिवर्तन लोकपाल की तीन सदस्यीय खंडपीठ से अनुमोदित कराने होंगे
इस बारे में स्पष्ट व्यवस्था नहीं है.
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संबंधित लोक प्राधिकरण, सिटीजऩ चार्टर में परिवर्तन संबंधी लोकपाल के आदेश को, ऐसे आदेश की प्राप्ति के एक महीने के अंदर लागू करेगा.
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प्रत्येक न्यायिक अधिकारी के कार्य का सामाजिक अंकेक्षण प्रत्येक 6 महीने में किया जाएगा. सामाजिक अंकेक्षण में न्यायिक अधिकारी जनता  के समक्ष प्रस्तुत होगा, अपने कार्य के संबंध में सभी तथ्य प्रस्तुत करेगा, जनता के सवालों के जवाब देगा और जनता के सुझावों को अपनी कार्य प्रणाली में शामिल करेगा. जन सुनवाई की ऐसी प्रक्रिया लोकपाल के वरिष्ठ अधिकारी की उपस्थिति में संपन्न होगी.
यह व्यवस्था नहीं की गई है
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किसी भी मामले को तब तक बंद नहीं किया जाएगा जब तक कि शिकायतकर्ता की  शिकायत का निवारण नहीं हो जाता अथवा न्यायिक अधिकारी किसी  शिकायत को खारिज नहीं कर देता.
यह व्यवस्था नहीं की गई है
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जनशिकायत आयोग की कोई आवश्यकता ही नहीं है. (वस्तुत: लोकपाल/लोकायुक्त के रहते जनशिकायत आयोग बनाकर एक तरह से आयुक्तों की भारी भरकम फौज खड़ी कर ली जाएगी. जिसकी  आवश्यकता ही नहीं है. अगर इस बिल में प्रस्तावित डेज़ीगेनेटेड अथारिटी को ही लोकपाल/लोकायुक्त के न्यायिक अधिकारी का दर्जा दे दिया जाता तो उसकी जवाबदेही भी तय हो जाती, उसका बजट भी लोकपाल से आता और जनशिकायत आयोग की आवश्यकता भी न पड़ती. )
अगर डेज़ीगेनेटेड अथारिटी भी 30 दिन में समस्या का निवारण नहीं करता है तो अगली अपील राज्य सरकार के मामलों में राज्य जनशिकायत आयोग एवं केंद्र सरकार के मामले में केंद्रीय जनशिकायत आयोग में की जा सकेगी. (प्रत्येक आयोग में 10 आयुक्त होंगे जो प्रमुख़त: अवकाश प्राप्त सरकारी अधिकारी अथवा न्यायधीश होंगे. इन आयोगों के लिए आयुक्तों का चयन एक बेहद कमज़ोर प्रक्रिया के तहत किया जा रहा है. संभावना है कि सरकारों में रिटायर होने वाले सचिव आदि अधिकारी सूचना आयुक्तों की तरह ही इन पदों पर भी क़ब्ज़ा जमा लें. उल्लेखनीय है कि सरकार के सिटीज़न चार्टर क़ानून में जनशिकायत आयुक्त का दर्जा मुख्य सचिव के बराबर का होगा और इसके लागू होते ही देशभर में करीब 250 पद ऐसे बनेंगे यानि एक साथ 250 अवकाश  प्राप्त आइएएस अधिकारियों और न्यायधीशॉ के लिए कम से कम मुख्य सचिव स्तर की कुर्सी तो बन ही गई. और उनकी ज़िम्मेदारी के नाम पर होगी एक लचर व्यवस्था जहां सरकार खुद नहीं चाहेगी कि ये लोग कुछ काम करें) जनशिकायत आयोग के पास भी सिविल कोर्ट के अधिकार होंगे और उनके पास भी ज़ुर्माना आदि लगाने के वही अधिकार होंगे जो डेज़ीगेनेटेड अथॉरिटी को दिए गए हैं
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लोकपाल/लोकायुक्त सदस्यों के पैनल के पास सिर्फ उसके न्यायिक अधिकारी के ठीक से काम न करने की शिकायतें जाएंगी. उसका काम जनशिकायत निवारण अधिकारी के बारे में लोगों की अपील पर सुनवाई करना नहीं होगा. अत: उसके पास आने वाली शिकायतें बहुत कम रहेंगी.
अगर जनशिकायत आयोग में भी 60 दिन में राहत नहीं मिलती है तो अगली अपील लोकपाल/लोकायुक्त के पास की जा सकेगी. यहां शिकायत सुनवाई की
कोई समय सीमा तय ही नहीं की गई है. (इस तरह सारी शिकायतों  का भंडार लोकपाल/लोकायुक्त कार्यालय में जमा हो जाएगा. उनके पास कोई पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण वहां भी शिकायतों की सुनवाई शायद ही हो. )
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जिला ब्लॉक स्तर पर न्यायिक अधिकारी का बजट भी लोकपाल/लोकायुक्त के पास से आएगा
जनशिकायत आयोगों और डेज़ीगेनेटेड अथारिटी के बजट सरकार की मेहरबानी पर निर्भर रहेंगे. अक्सर देखा गया है कि सरकारें इन आयोगों को कमज़ोर करने के लिए, जानबूझकर, उन्हें पर्याप्त संख्या में कर्मचारी/अधिकारी एवं संसाधन ही नहीं उपलब्ध करातीं और इनके मुखिया संसाधनों का रोना रोते हुए काम एवं जिम्मेदारी से बचते रहते हैं


इस तरह अगर आपका किसी व्यापार के लिए लाईसेंस, मकान का नक्शा, ड्राविंग  लाईसेंस, राशनकार्ड, जॉब कार्ड, जाति प्रमाण पत्र आदि बनने में रिश्वतखोरी की शिकायत आप करना चाहते हैं तो जनलोकपाल के अनुसार आपको अधिकतम जिला स्तर तक लोकपाल के न्यायिक अधिकारी तक जाना होगा. इस तरह काम होने में अधिकतम 2 से 3 महीने का समय लगेगा. इतना ही नहीं अगर किसी विभाग के प्रमुख पर एक बार भी ज़ुर्माना लग गया तो वह आगे से सुनिश्चित करेगा कि उसके यहां सिटीजऩ चार्टर का पालम ठीक से हो.
लेकिन सरकार के सिटीजऩ चार्टर बिल के प्रस्तावों में आप जनशिकायत अधिकारी, उसके बाद डेज़ीगेनेटेड अथॉरिटी, उसके बाद जनशिकायत आयोग और उसके बाद लोकपाल/लोकायुक्त के पास जाएंगे. इसमें कम से कम एक साल का समय लगेगा, और लोकपाल/लोकायुक्त के पास अपील की सुनवाई कब होगी यह तो भगवान ही जाने.

Tuesday, December 13, 2011

Expand Your Potential--- By Swami Brahmadev (TOI 12/11/2011)


Everything is created by your mind, by yourself. What exists in your mind is what you create around you. If there is fear in your mind, there will be fear everywhere around you. If there are enemies in your mind, there will be enemies everywhere around you. It’s all in your mind.
Sri Aurobindo’s attitude was his teacher. When we are born, our teacher is born with us. Teacher means my learning nature. Your guru, your master, your guide is always inside. There is not only one guide; there are hundreds of them in you. If you are not able to listen to your inner guide, then you need an outer guide. All around us, the whole of nature is our guide.
The human body is a seed, and inside it the Divine is implanted. So, all divine potential is inside, and we all have the capability to manifest it. When the seed comes into the hands of a good gardener then the seed is safe. Otherwise, uncared for, the seed will never grow despite having the potential.
Now, is your seed packed in the bag or in Divine hands? Who is a master, aguru? He is but a gardener. The master knows how to sow the seed and what to do with it. The seed does not think about that. Millions of seeds just remain in the bag and not rot there. They are never able to manifest. Few seeds manifest. Our life is just like that. Who is your gardener? Where is your gardener?
Surrender to the Divine. Give yourself. The seed gives itself to the gardener, and that is all. How do we surrender to our gardener? The gardener could be our conscious clarity, our inner true being, or the gardener can be an outside guide.
There is no fixed way. If you can discover your conscious clarity, the clarity of your soul, then you are in the hands of the gardener. Your conscious clarity knows. Not a mental, vital, emotional, egoistic clarity, but the clarity of the soul. But how do I discover my clarity, my gardener? What is inside the seed? Light and life.
Darkness is associated with negativity, selfishness and fear. Light is associated with positivity, bliss, harmony and joy.  Now the choice is yours. Would you like to struggle in the dark or bloom in the light? You choose. Inside you, there is all the darkness, and inside you, there is all the light. The choice is yours. If you think that you can grow better with darkness, you are free to choose and live with it, to deal with it. Nature gives us full freedom: Either live the whole day with sadness or make the effort to live in peace and harmony, joy and bliss.
With the experiences of life we realize the one principle: The universe and all of nature survives on the principle of expansion. We are a universe. If your life is in the hands of good forces, they will make your heart bigger, your mind bigger, everything will get enlarged metaphorically….your consciousness, thinking, feelings, emotions. Vastness will come. If you are in the hands of forces that are reducing your life, like jealously, hatred, negativity, narrowness, selfishness and greed, then you are on the opposite side. What you face and how you face it is in your and the gardener’s hands.