हम लोग कब जागेगे व्यवसायी कम्पनियों, विशेषकर ठंडा पेय बनाने वाली कम्पनियों से, उनके झूठे विज्ञापनों से ! क्या ठन्डा माने सच में कोका कोला होता है?
क्या 'वास्तव में इनर्जी ड्रिन्क' स्वस्थ्यकारक ऊर्जा देती है या चीनी का गाढ़ा घोल्, जिसमें 'high' देने के लिये अत्यधिक हानिकारक मात्रा में कैफ़ीन आदि उत्तेजक पदार्थ मिले होते हैं?
यह सब शुरु तो विदेशों से होता है और हमारे जैसे विकासशील देशों में लोकप्रिय हो जाता है; तब उसका वहां प्रतिबन्ध हो जाता है किन्तु हमारे यहां (हम बेवकूफ़ों के यहां?) खूब बिकता रहता है!
हमारी सरकार तो और भी 'चतुर' है, हमारी खाद्य - पेय नियंत्रण प्राधिकरण की इस सम्बन्धी वैज्ञानिक सलाहकार समिति में इन कम्पनियों के प्रतिनिधि विशेषज्ञ बनकर बैठाए जाते हैं। जब चोर ही नियम बनाएगा तब चोर कैसे पकड़े जाएंगे???
तभी तो सुनीता नारायण जैसी दबंग महिला को मैदान में कूदना पडता है। किन्तु उसके द्वारा सत्य का उद्घाटन करने पर भी शासन के कानों में जूं तक नहीं रेंगता।
'सक्रियता', 'एक्टिविज़म' आज का आवश्यक कर्तव्य है। वरना हमारे बच्चे बीमार ही रहेंगे, शरीर से और मन- बुद्धि से !हम तो ज़हर पी रहे हैं, क्या हमारे बच्चे भी ज़हर पियें?
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