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Manish Pathak M. Sc. in Mathematics and Computing (IIT GUWAHATI) B. Sc. in Math Hons. Langat Singh College /B. R. A. Bihar University Muzaffarpur in Bihar The companies/Organisations in which I was worked earlier are listed below: 1. FIITJEE LTD, Mumbai 2. INNODATA, Noida 3. S CHAND TECHNOLOGY(SCTPL), Noida 4. MIND SHAPERS TECHNOLOGY (CLASSTEACHAR LEARNING SYSTEM), New Delhi 5. EXL SERVICES, Noida 6. MANAGEMENT DEVELOPMENT INSTITUTE, GURUGRAM 7. iLex Media Solutions, Noida 8. iEnergizer, Noida I am residing in Mira Road near Mumbai. Contact numbers To call or ask any doubts in Maths through whatsapp at 9967858681 email: pathakjee@gmail.com

Tuesday, February 22, 2011

पश्चिम की गंदी सोच


हौवर्ड ब्लूम विश्वप्रसिद्ध सम्मानित उद्योगपति एवं लोकप्रिय विचारक हैं, जिनके ३ क्रान्तिकारी ग्रन्थ विश्व विख्यात हैं : १. 'द लूसिफ़र प्रिंसिपल : ए साइन्टिफ़िक एक्सपिडीशन इन टु द फ़ोर्सैज़ आफ़ हिस्टरी; २. ग्लोबल ब्रेन : द एवाल्यूशन आफ़ मास माइन्ड फ़्राम द बिग बैन्ग टु द 21स्ट सैन्चुरी; एवं ३. 'द जीनियस आफ़ द बीस्ट'। वे 'प्रोडिजी' या विलक्षण प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं। उनके विचारों को समझना आवश्यक है क्योंकि वे भूतकाल तथा भविष्यकाल के लैन्सों से वर्तमान को देखना जानते हैं।
उनका एक प्रसिद्ध लेख है, “ पुटिंग सोल इन द मशीन" जिसमें वे दावा करते हैं कि ओसामा बिन लादैन आधुनिक संस्कृति, अर्थात विचारों की स्वतंत्रता, मानवाधिकार, सैकयुलरिज़म, महिलाओं के अधिकार, समलैन्गिकों के अधिकार आदि, पर आक्रमण कर रहा है। अत हम सभी को जिहाद के विरोध में लड़ने के लिये तैयार रहना चाहिये।
ब्लूम आगे कहते हैं, “हमें बतलाया जाता है कि धनी मानी व्यक्ति पैसा लूटने के लिये कृत्रिम इच्छाएं पैदा करते हैं, . . . हमें गुलाम खरीददार बनाने के लिये उद्योगपति दिन रात काम करते हैं. . . और इसमें कुछ सत्य तो है . . किन्तु समस्या का मूल पाश्चात्य जीवन की टर्बाइनों में‌ नहीं, .. वरन हमारे लैंस अर्थात दृष्टिकोण में‌ है . . इस अद्भुत ग्रह को यह विचारहीन लोभ का लंपटपन वाला उपभोक्तावादी नष्ट करने पर नहीं तुला हुआ है; यह सर्वोत्तम सृजनशील जैव एंजिन है जिसमें ऐसी आदर्शमय संभावनाएं हैं जो पहले कभी नहीं देखी‌ गईं।"
यहां ब्लूम के लैन्स का रंग गलत है। यद्यपि एक व्यंग्यात्मक रूप में वे ठीक कह रहे हैं - कि समस्या लैंस में है, बस अंतर इतना ही कि उनका ही लैंस गलत है। यह विचार या विश्वास, कि भरपेट भोग करने से सुख मिलता है, ही गलत है। भोग की इच्छा पूरी करने से भोग की और इच्छाएं उत्पन्न होती‌ हैं,उनसे पेट नहीं भर सकता। अंतत: भोगवादी इच्छाओं के पूरी‌ न होने से अथवा इंद्रियों के दुर्बल होने से हताश हो जाता है। और इस शस्य श्यामला पृथ्वी को वह उजाड़ रहा है जिससे बच्चों का भविष्य अंधकारमय ही दिख रहा है। अंत में, यद्यपि बहुत देर बाद, वह समझ जाता है कि उसने जीवन मृगतृष्णा की तरह बिता दिया।
ब्लूम आगे लिखते हैं, “ लगभग प्रत्येक धर्म (फ़ेथ) ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, और मार्क्सिज़म घोषणा करते हैं कि वे दलित और गरीबों को सुखी‌ बनाएंगे । किन्तु केवल पूँजीवाद ही इस वचन को पूरा करने में सफ़ल हुआ है।" मजे की‌ बात है कि नोबेल पुरस्कृत अमैरिकी मनोवैज्ञानिक डैनी कान मैन कहते हैं कि अमैरिकी‌ नहीं जानते कि सुख क्या है!! इसका अर्थ यह तो निश्चित ही हुआ कि भोगवाद में सुख नहीं‌ है। पूँजीवादी अमैरिका में गरीब, जो अन्य देशों के गरीबों से अधिक धनी‌ होता है, अधिक दुखी‌ होता है क्योंकि वह अमीरों को अपनी तुलना में इतना अधिक भोग लेते हुए देखता है। और दूसरी बात कि मनुष्य अब अपनी इच्छाओं का स्वैच्छिक गुलाम हो जाता है, तब गुलाम को सुख कहां !
ब्लूम पुन: घोषित करते हैं, “जब कि अर्धमृत पूँजीवाद ने मानव को भारी मात्रा में नई शक्ति दी‌ है, तदनुभूति (एम्पैथी), भावाकुलता तथा तर्क की त्रयी‌ द्वारा चालित पूंजीवाद नए और बड़े आश्चर्य प्रदान कर सकता है।" यह भी मूलभूत सत्य है कि पूँजीवाद में सबसे पहला लक्ष्य 'लाभ' होता है, अन्य मूल्य इसके बाद हाशिये पर ही आते हैं। और यदि अन्य मूल्य लाभ के पहले आ गए तब वह पूँजीवाद नहीं। अर्थात वे स्वीकार करते हैं कि पूँजीवाद सुख देने में असमर्थ है। इसके बाद वे एक और घोषणा करते हैं, “ पश्चिम में हम यह मंत्र मानकर जीवन जीते हैं कि हम एक दूसरे को उठाते हुए कार्य करें, और हम यह वैश्विक स्तर पर करते हैं।" यह तो मानी हुई बात है कि अधिकतर आदमी अपने को दूसरों से अच्छा ही मानता है; किन्तु यहां तो ब्लूम महोदय ने झूठ की सीमा ही पार कर दी। पूंजीवाद तो अपना लाभ सर्वप्रथम देखता है, दूसरे को उठाने की‌ बात तो अपना लाभ बढ़ाने के उद्देश्य से ही आएगी। स्वार्थ तो पूंजीवाद का मूल मंत्र है।
विश्व बैंक द्वारा प्राप्त आँकड़े दिखलाते हैं कि " विश्व के सर्वाधिक समृद्ध देश में गरीबों तथा धनिकों में सबसे बड़ा अंतर है, और यह अंतर समय तथा प्रौद्योगिकी से साथ बढ़ता ही जा रहा है।" यह आँकड़े ब्लूम साहब के झूठ को दिन के प्रकाश के समान चमका रहे हैं !
ब्लूम साहब आगे कहते हैं, “ भोगवाद जो दुष्ट दिखता है वह वास्तव में‌ है नहीं। मशीन में अपनी आत्मा डालकर हम और आप पूँजीवाद को नया जन्म देकर मानव की संभावनाएं और बढ़ा सकते हैं। इसका अर्थ तो रहस्यमय है। मेरी समझ में तो यही आता है कि पूँजीवादी की आत्मा तो और और भोग, अन्तहीन भोग ही‌ माँगती है।
वे अपनी पुस्तक 'द जीनियस आफ़ द् बीस्ट' में भावाकुल होकर ज़ोर से घोषणा करते हैं, “ मां प्रकृति तो एक खूनी कुतिया है। वह घोर विपत्तियों की मां है जननी है! उसमे हमें 'गार्डन आफ़ ईडन' या आदिम स्वर्ग शायद ही कहीं दिया हो . . . . विकास का ध्येय ही प्रकृति के एक कदम आगे रहना है, प्रकृति के नियमों को तोड़ना है। इसीलिये टिकाऊ विकास की जड़ों में समस्याएं ही हैं, और अपनी‌ निश्चित हार। यही‌ हमारी‌ चुनौती है। हमें तो बाढ़ में, सूखे में और नवीन हिमयुग में पर्याप्त अनाज पैदा करना है। मूल अनिवार्यता है कि इस गृह के प्रत्येक परमाणु को हमें अपने डी एन ए तंत्र की सेवा में नियुक्त करना है, । मां प्रकृति चाहे जितनी घृणित दुर्घटनाएं हम पर ढाए, हमारे डी एन ए अगले बहुल विनाश में बच कर आगे निकल जाएं, । क्या मैं कोरी कल्पना की ऊँची उड़ाने भर रहा हूं !!”
"नहीं। लिथोआट्राफ़्स बैक्टीरिया अब चट्टानों का भोजन बना रही है, एक्स्ट्रीमोफ़ाइल्स बैक्टीरिया गंधक का। यह सूक्ष्म जीव हमें शिक्षा दे रहे हैं कि जो प्रकृति की अवज्ञाकर, नवाचार करते हैं, वही सीमाओं के पार जाते हैं, नवीन समृद्धि को प्राप्त करते हैं।. . . हम इसी तरह प्रकृति की क्षमताओं में वृद्धि करते हैं।"
स्पष्ट ही ब्लूम पर्यावरण के संरक्षण में विश्वास नहीं करते, वरन उससे लड़कर जीवन बचाना चाहते हैं। वे इसके उदाहरण भी देते हैं। 'चेन्जिन्ग वर्ल्ड टैक्नालाजीज़' औद्योगिक तथा कृषीय सहउत्पादों को तेल, गैस, विशेष रसायनों, उर्वरकों आदि में बदलते हैं - कचड़े को स्वर्ण में बदल रहे हैं। देखा जाए तो यह कदम पर्यावरण संरक्षण का ही अगला चरण है, किन्तु ब्लूम के युद्ध में‌ यह पहला कदम है। उऩ्हें पर्यावरण संरक्षण से जो विरोध है, उसे समझना कठिन है, जो अव्यवहारिक भी है, एकांगी भी हैं, किन्तु एकदम पागलपन भी नहीं हैं। प्रकृति का विरोध तो तब करना चाहिये जब हम उऩ्हें ठीक से समझ लें। उनके कथनों को विज्ञान कथाकार विश्लेषण तथा संश्लेषण कर उनका मंथन कर उन में से मक्खन निकाल सकते हैं।

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