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Manish Pathak M. Sc. in Mathematics and Computing (IIT GUWAHATI) B. Sc. in Math Hons. Langat Singh College /B. R. A. Bihar University Muzaffarpur in Bihar The companies/Organisations in which I was worked earlier are listed below: 1. FIITJEE LTD, Mumbai 2. INNODATA, Noida 3. S CHAND TECHNOLOGY(SCTPL), Noida 4. MIND SHAPERS TECHNOLOGY (CLASSTEACHAR LEARNING SYSTEM), New Delhi 5. EXL SERVICES, Noida 6. MANAGEMENT DEVELOPMENT INSTITUTE, GURUGRAM 7. iLex Media Solutions, Noida 8. iEnergizer, Noida I am residing in Mira Road near Mumbai. Contact numbers To call or ask any doubts in Maths through whatsapp at 9967858681 email: pathakjee@gmail.com

Wednesday, January 12, 2011

अंग्रेजी नववर्ष का भारतीयकरण

कुछ दिन बाद फिर एक जनवरी आने वाली है। हर बार की तरह समाचार माध्यमों ने वातावरण बनाना प्रारम्भ कर दिया है। अतः 31 दिसम्बर की रात और एक जनवरी को दिन भर शोर-शराबा होगा, लोग एक दूसरे को बधाई लेंगे और देंगे। सरल मोबाइल संदेशों (एस.एम.एस) के आदान-प्रदान से मोबाइल कंपनियों की चांदी कटेगी। रात में बारह बजे लोग शोर मचाएंगे। शराब, शबाब और कबाब के दौर चलेंगे। इसके अतिरिक्त और भी न जाने लोग कैसी-कैसी मूर्खताएं करेंगे ? जरा सोचिये, नये दिन और वर्ष का प्रारम्भ रात के अंधेरे में हो, इससे बड़ी मूर्खता और क्या हो सकती है ?
यह अंग्रेजी या ईसाई नववर्ष दुनिया के उन देशों में मनाया जाता है, जिन पर कभी अंग्रेजों ने राज किया था। यद्यपि हर देश अपने इतिहास और मान्यताओं के अनुसार नव वर्ष मनाता है। भारत में प्रायः सभी संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होते हैं; पर प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमरीका और ब्रिटेन का वर्चस्व दुनिया में बढ़ गया। इन दोनों के ईसाई देश होने से कई अन्य देशों में भी ईसाई वेशभूषा, खानपान, भाषा और परम्पराओं की नकल होने लगी। भारत भी इसका अपवाद नहीं है।
यह बात मुझे आज तक समझ में नहीं आई कि यदि ईसा मसीह का जन्म 25 दिसम्बर को हुआ था, तो जिस वर्ष और ईस्वी को उनके जन्म से जोड़ा जाता है, उसे एक सप्ताह बाद एक जनवरी से क्यों मनाया जाता है ? वस्तुतः ईसा का जन्म 25 दिसम्बर को नहीं हुआ था। चौथी शती में पोप लाइबेरियस ने इसकी तिथि 25 दिसम्बर घोषित कर दी, तब से इसे मनाया जाने लगा। तथ्य तो यह भी हैं कि ईसा मसीह के जीवन के साथ जो प्रसंग जुड़े हैं, वे बहुत पहले से ही योरोप के अनेक देशों में प्रचलित थे। उन्हें ही ईसा के साथ जोड़कर एक कहानी गढ़ दी गयी।
इससे इस संदेह की पुष्टि होती है कि ईसा नामक कोई व्यक्ति हुआ ही नहीं। वरना यह कैसे संभव है कि जिस तथाकथित ईश्वर के बेटे के दुनिया में अरबों लोग अनुयायी हैं, उसकी ठीक जन्म-तिथि ही पता न हो। जैसे भारत में ‘जय संतोषी मां’ नामक फिल्म ने कई वर्ष के लिए एक नयी देवी को प्रतिष्ठित कर दिया था, कुछ ऐसी ही कहानी ईसा मसीह की भी है।
इसके दूसरी ओर भारत में देखें, तो लाखों साल पूर्व हुए श्रीराम और 5,000 से भी अधिक वर्ष पूर्व हुए श्रीकृष्ण ही नहीं, तो अन्य सब अवतारों, देवी-देवताओं और महामानवों के जन्म की प्रामाणिक तिथियां सब जानते हैं और उन्हें हर वर्ष धूमधाम से मनाते भी हैं।
लेकिन फिर भी नव वर्ष के रूप में एक जनवरी प्रतिष्ठित हो गयी है। लोग इसे मनाते भी हैं, इसलिए मेरा विचार है कि हमें इस अंग्रेजी पर्व का भारतीयकरण कर देना चाहिए। इसके लिए निम्न कुछ प्रयोग किये जा सकते हैं।
1. 31 दिसम्बर की रात में अपने गांव या मोहल्ले में भगवती जागरण करें, जिसकी समाप्ति एक जनवरी को प्रातः हो।
2. अपने घर, मोहल्ले या मंदिर में 31 दिसम्बर प्रातः से श्रीरामचरितमानस का अखंड पारायण प्रारम्भ कर एक जनवरी को प्रातः समाप्त करें।
3. एक जनवरी को प्रातः सामूहिक यज्ञ का आयोजन हो।
4. एक जनवरी को भजन गाते हुए प्रभातफेरी निकालें।
5. सिख, जैन, बौद्ध आदि मत और पंथों की मान्यता के अनुसार कोई धार्मिक कार्यक्रम करें।
6. एक जनवरी को प्रातः बस और रेलवे स्टेशन पर जाकर लोगों के माथे पर तिलक लगाएं।
7. एक जनवरी को निर्धनों को भोजन कराएं। बच्चों के साथ कुष्ठ आश्रम, गोशाला या मंदिर में जाकर दान-पुण्य करें।
यह कुछ सुझाव हैं। यदि इस दिशा में सोचना प्रारम्भ करेंगे, तो कुछ अन्य प्रयोग और कार्यक्रम भी ध्यान में आएंगे। हिन्दू पर्व मानव के मन में सात्विकता जगाते हैं, चाहे वे रात में हों या दिन में। जबकि अंग्रेजी पर्व नशे और विदेशी संगीत में डुबोकर चरित्रहीनता और अपराध की दिशा में ढकेलते हैं। इसलिए जिन मानसिक गुलामों को इस अंग्रेजी और ईसाई नववर्ष को मनाने की मजबूरी हो, वे इसका भारतीयकरण कर मनाएं।

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